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छत्तीसगढ़ में सिरपुर के बाद 6 वीं शताब्दी का ऐतिहासिक बौद्ध स्थल भोंगापाल
Friday, June 6, 2025
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*सौ एकड़ क्षेत्र के लिए 100* *करोड़ रुपए से अधिक की* *परियोजना पर होगा ऐतिहासिक काम*
सम्राट अशोक कलिंग जीतने के बाद लौटते समय बस्तर के भोंगापाल में रूकने के वैज्ञानिक और पुरातात्विक प्रमाण मौजूद है। इतिहास गवाह है कि छिन्दक नागवंशी काल में दो हजार साल पहले यह बहुत विकसित क्षेत्र रहा है। शांति के लिए यहां बुद्ध चैत्य गृह और पीस ऑफ़ टूरिज्म एंड ईको ह्यूमन हार्मनी डेस्टिनेशन के रूप में विकसित था। कॉलांतर में समय के साथ यह घने जंगलों में तब्दील हो गया। छत्तीसगढ़ में सिरपुर के बाद हजारों साल पहले के द्वितीय इस महान पुरातात्विक क्षेत्र भोंगापाल को छत्तीसगढ़ शासन संकल्प लेकर *बुद्ध शांति पार्क* के रूप पुनर्स्थापित करने की सशक्त और दूरदर्शी पहल कर रही है।
बुद्ध शांति पार्क की अद्वितीय, अनुपम , अद्भुत और सार्थक परियोजना के घटकों के अनुरूप यहां 100 एकड़ से अधिक क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए जाएंगे। इसके अंतर्गत लगभग 100 करोड़ रुपए की परियोजना लागत से बुद्ध शांति पार्क की स्थापना की जाएगी। जिसमें बुद्ध ध्यान केंद्र, भिक्खु एवं भिक्खुणीआवास परिसर, अंतरराष्ट्रीय स्तर का अतिथि गृह, शांति पथ , ज्ञान पथ ,जैव विविधता संरक्षण क्षेत्र , पंचशील पर आधारित पांच लोटस रिजर्वॉयर (कमल जलाशय), गढ़कलेवा कैफेटेरिया, हर्बल रिसर्च सेंटर, ट्राइबल आर्ट एंड क्राफ्ट सेंटर, धम्मपद और त्रिपिटक शिलालेख के उत्कीर्ण ,भगवान बुद्ध ,डॉ अंबेडकर और सम्राट अशोक की विशाल प्रतिमाएं, हिंदी -अंग्रेजी- हल्बी- गोंडी में संविधान की प्रस्तावना, नालंदा लाइब्रेरी , अंतरराष्ट्रीय सेमिनार हाॅल, व्याख्यान कक्ष, अतिथि गृह, पर्यावरण शिक्षा केंद्र, पार्किंग, बाउंड्री वॉल,फेंसिंग और पर्यटन सूचना केंद्र आदि कार्य किया जाना संकल्पित है।
यह स्थल केवल एक पुरातात्विक धरोहर नहीं बल्कि मानव और प्रकृति के सामंजस्य का प्रतीक है छत्तीसगढ़ी नहीं बल्कि राष्ट्र को भी *इको ह्यूमन हार्मनी* की अवधारणा को मूर्तरूप देने वाला स्थान है।
विदित हो कि भोंगापाल बुद्ध शांति पार्क अतीत की विरासत और भविष्य की शांति का संगम है । यह बस्तर की धरती से विश्व को शांति सह अस्तित्व और नैतिकता का संदेश देगा।
इन्हीं मूल उद्देश्यों के अनुरूप छत्तीसगढ़ शासन भोंगापाल को *पीस टूरिज्म डेस्टिनेशन* के रूप में भी स्थापित करने की सशक्त पहल कर रही है।
*बुद्ध का बस्तर- भोंगापाल*
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भारत का इतिहास ज्ञान, शांति, और करुणा का इतिहास है। इसी परंपरा के अमर प्रतीक तथागत बुद्ध ने सम्यक दृष्टि ,अहिंसा और नैतिक जीवन के माध्यम से मानवता को नई दिशा दी। बस्तर के भोंगापाल ग्राम में स्थित प्राचीन बौद्ध चैत्य गृह आज भी उनकी शिक्षाओं का जीवंत प्रतीक है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का ग्राम भोंगापाल, कोंडागांव- नारायणपुर जिले की सीमा पर स्थित है। यह क्षेत्र बस्तर की प्राचीन बौद्ध परंपराओं का केंद्र रहा है। समीपवर्ती *बोध घाट* और *जैतगिरी* *(चैत्यगिरी) भी इस बौद्ध विरासत के प्रमाण हैं । प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण पर्वत, इंद्रावती नदी, जैव विविधता वाले वनों, जलप्रपातों और वन्य जीवन का समन्वय भोंगापाल को एक विशिष्ट सांस्कृतिक प्राकृतिक धरोहर बनता है। बुद्ध के सिद्धांत और बस्तर की जीवन शैली में एक विशिष्ट समरसता है ।बस्तर के जनजातीय समाज का सादा जीवन, आपसी प्रेम और सौहार्द, सामूहिकता, अहिंसात्मक व्यवहार और प्रकृति के प्रति सम्मान बुद्ध के पंचशील और त्रिशरण में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। बस्तर की लोक संस्कृति में बुढ़ादेव की पूजा वास्तव में* *बुद्ध की स्मृति है बुद्ध यहां* *जीवन में रचे बसे हैं।*
आज जब जलवायु संकट विकराल हो चुका है भोंगापाल जैसे ग्रामीण क्षेत्र कम उपभोग और प्राकृतिक सामंजस्य के सिद्धांतों पर आधारित जीवन शैली का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। यह क्षेत्र मनुष्य और प्रकृति के बीच शानदार प्रगाढ़ रिश्ते *ईको ह्यूमन हार्मनी* के साथ *_MAN-NATURE-_*
*BALANCE*
का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
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